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Consultationजब बारात बाहर गांव से वापस आती है एवं अपने गांव पहुंचनेवाली होती है तब बीन के घर में बधावा के गीत गाये जाते हैं। जब गांव में ही विवाह हो तो बीन, बिनणी के घर में पहुंचने के पहले बधावा के गीत गाये जाते हैं।
बीन-बिनणी के घर में प्रवेश के पहले सांकळी मांडते हैं। जिसके बीच में आगमन हेतु स्वागत स्वरूप थोड़ा-सा खुला रखते हैं, जिसको बिनणी के प्रवेश के बाद बंदकर देते हैं। सांकळी को खुळा रखने का अर्थ है कि परिवार बीन-बिनणी का स्वागत करता है। वे अन्दर प्रवेश करें। पुराने जमाने में घर के अन्दर चौक के मध्य जमीन पर पगल्या स्वागत स्वरूप मांडते थे।
बीन के विवाह कर घर आने की खुशी में शकुन के तौर पर मेहंदी व दमेदा (बड़ा-बताशा) के सात पॉकेट घर की बड़ी सात उपस्थित महिलाओं को बांटती हैं। पुराने जमाने में परिवार के घरों में भेजते थे।
जब बारात वापस आती है तब पुराने जमाने में तो जंवाई बधाईदार बनकर आते थे। जंवाई को बाजोट पर बैठाकर तिलक करते थे एवं बधाई के रुपये देते थे। आजकल कोई भी बधाईदार आ सकता है। जो भी बधाईदार आता है उसको लिफाफा देते हैं।
जब बीन, बिनणी लेकर घर आता है तब बीन की मां, बिनणी को एवं पिताजी बीन को हाथ पकड़कर गाड़ी से उतारते हैं। बिनणी पीहर में दिया हुआ चांदी का प्याला, सासु को पगे लागकर वहीं देती है।
बीन की बहिनें बाड़-रुकाई करती हैं। Main दरवाजे पर खड़ी होकर वे बीन-बिनणी को अन्दर प्रवेश से रोकती हैं जिसे बाड़-रुकाई कहते हैं । बहिनें गीत गाती हैं। नेग के लिफाफे उपस्थित सभी बहिनों को देते हैं। लिफाफे के रुपयों हेतु बहिनें दरमुलाई करती हैं। फिर तनवा तानकर बीन-बिनणी को घर में प्रवेश कराते हैं। प्रवेश के समय जल की भरी हुई चांदी की गड्डी बिनणी के सिरपर रखी जाती है जिसमें दूब भी रखते हैं। बीन की मां प्रवेश के समय बीन- बिनणी का आरता करती है एवं बीन को नेतरा से चार बार नापती है।
प्रवेश करने पर दरवाजे के अन्दर गेरू एवं चूने से सात घेरे एक सीधी कतार में मांडकर उन पर कांसी अथवा चांदी की थाली/प्लेट रखते हैं/पहली थाली/प्लेट थोड़ी छोटी साइज की होती है ताकि बाकी 6 थाली/प्लेट को उठाने एवं एकत्र करने में सुविधा हो। थाली/प्लेटों में रोळी से सांथिया मांडते हैं एवं उसमें खारक, बताशा, मूंग एवं रुपये रखते हैं। प्रवेश करने की प्रक्रिया में बीन, कटार से थालियों / प्लेटों को Side में करता है। पहली थाली को दाहिनी तरफ एवं दूसरी को बाईं तरफ करता है। इसी प्रकार बाकी की पांच थालियों/प्लेटों को दाहिने/बाईं करता है। बिनणी सभी थालियों / प्लेटों को बिना थालियों/प्लेटों की आवाज किये पहली थाली के नीचे दूसरी थाली एवं बाकी की पांचों थाली/प्लेटों को उनके नीचे रखती हुई दोनों हाथों में उठा लेती है। बिनणी सासु को, जो आगे बाजोट पर बैठी होती है, वे सभी थालियां/प्लेंट देती हैं एवं प्रणाम करती है। इस प्रक्रिया को थालेड़ी कहते हैं। थालेड़ी का गीत गाया जाता है। गीत अध्याय 8 में विवाह के गीतों में बताया गया है।
फिर बीन एवं बिनणी को मायां के पास ले जाकर धोक दिलाते हैं।
उसके पश्चात् बिनणी को सामान घर में ले जाते हैं एवं सासु, गुड़ एवं घी में बिनणी का हाथ घलाती है। इसका गीत गाया जाता है। गीत अध्याय 8 में बताया गया है।
नारियल, पुष्पमाला, ओढ़ना, रुपये। बीन, विवाह के दिनवाले कपड़े-शेरवानी पहिनता है, सेवरा बांधता है। बिनणी भी ब्यावला घाघरा, ओढ़ना पहिनती है। परिवार की भूवा/बहिन अथवा घर की बड़ी महिला, बीन एवं बिनणी को, प्रवेश के दूसरे दिन, मन्दिर दर्शन के लिये ले जाती है। सर्वप्रथम कुल देवता के मन्दिर एवं जिस शहर में रहते हैं उस शहर के मुख्य मन्दिर ले जाती है। (मुबई में वैंकटेश मन्दिर ले जाते हैं ।) वहां नारियल, माला एवं रुपये चढ़ाकर गठजोड़े से धोक दिलाते हैं। आते समय ओढ़ने का चंदवा करके बीन बीनणी को घर लाते हैं।
बीनणी आने के उपलक्ष में जीमण करते हैं जिसे रंग भात कहते हैं । उसी दिन सुविधा हेतु जंवाईयों को भी भोजन के लिये बुलाते हैं एवं उन्हें सीख के लिफाफे देते हैं इसलिये इसे जंवाई जीमण भी कहते हैं।
एक चौकी, दो गद्दी, आरते की थाली (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब, जल की गड्डी), दूसरी थाली में तेल, कंघा, मेण, चोटी, टीका या बोर एवं पगेलागनी के लिफाफे ।
चौकी लगाकर उस पर गद्दी लगा दें। चौकी के सामने एक गद्दी बिनणी के बैठने के लिये लगाएं। भुआ/बहिन जो सिर- गूंथी करे वह चौकी पर गद्दी लगाकर बैठ जाए। बिनणी को सामने गद्दी पर बैठा ले। बिनणी के सिर में थोड़ा-सा तेल लगाये। कंघी से बाल बनाकर चोटी गूंथ दे अथवा मोळी से चोटी गूंथ दे। मेण लगा दे। बोर या टीका लगा दे, सिर ढक दे। फिर मुंह धुलाकर तिलक कर दे एवं नथ पहिना दे। गुड़ से मुंह जुठा दे। सिर गूंथी करनेवाली को बिनणी पगे लाग कर लिफाफा दे।
दो गद्दी, पूजा की थाली (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब, जल की गड्डी) बाजरी, पगेलागणी के लिफाफे, लाख की पांच लाल चुड़ियां, तवा, कोयले की अग्नि ।
बिनणी को एक गद्दी पर बैठा देते हैं। सामने लखेसरी (चूड़ा) पहिनानेवाली बैठ जाती है। सर्वप्रथम बीनणी के पहिने हुये सेण-सूत एवं गहने खोल लेते हैं। बिनणी अपनी सासु अथवा घर की बड़ी महिला को पगे लाग कर वह सेन-सूत देती है। यदि लखारण बुलाई गई हो तो वह हाथी-दांत के चूड़े के आगे-पीछे दोनों हाथों में एक-एक लाख की चूड़ी पहिना दे । (पहिना हुआ हाथी-दांत का चूड़ा खोला नहीं जाता है।) लखारण की सुविधा न हो तो काकेसासु/जिठानी उपरोक्त लखेसरी का नेग करती है। तवा पर लाई गई अग्नि को सामने रखते हैं। लखेसरी (लाख) की दो-दो चूड़ियां अग्नि पर थोड़ा गरम करके बिनणी के दोनों हाथों में पहिना देते हैं।
बाजरी का आखा हाथ में लेकर अग्नि के ऊपर बिनणी अपने दोनों हाथ करे। लखेसरी पहिनानेवाली उन चूड़ियों पर जल डाले एवं कपड़े से पौंछ ले। तवा एवं अग्नि को एक तरफ कर दे। फिर ननद दोनों हाथों में पहिनी हुई लाख की चूड़ियों में से एक-एक चुड़ी में मोळी बांधे, बिनणी को तिलक करे, गुड़ से मुंह जुठा दे। बिनणी चूड़ा पहिनानेवाली एवं चूड़ियां को मोळी बांधनेवाली को पगे लागकर लिफाफा दे। घर की बड़ी उपस्थित महिलाओं को बिनणी पगेलागणी करवाती है। एक या दो दिन पश्चात् परिवार के अन्य घरों में बड़ों को पगेलागणी हेतु बिनणी को जेठाणी अथवा ननद के साथ भेजते हैं।
चांदी की एक थाली, चांदी की कटोरियां, चांदी की गिलास, चांदी की गड्डी, चांदी की 4/5 चम्मच, चांदी का एक रुपया, चौकी, गद्दी, लापसी, चावल, बड़ी का साग, बताशे, काले तिल, घी। इस दिन लापसी, चावल की रसोई बनवाते हैं।
बिनणी को गद्दी पर बैठाते हैं। सामने बाजोट रखते हैं। उस पर चांदी की थाली में लापसी, चावल, कटोरी में बड़ी का साग एवं बताशे परोसते हैं। पश्चात् घी एवं काले तिल, चावल पर परोसते हैं। बिनणी के सामने बाजोट के तीनों तरफ दादे-सासु, बड़ीयासासु, सासु व काकेसासु एवं जिठानी साथ में बैठती हैं। सर्वप्रथम बीन घिलोड़ी अथवा छोटी गड्डी से चावल पर घी डालता है। बिनणी, बीन का हाथ पकड़कर ज्यादा घी परोसने से रोकती है। फिर बीन, बिनणी को चांदी के रुपये से एक गासिया लापसी एवं चावल का खिलाता है। पश्चात् बीन को उसी चांदी के रुपये से लापसी एवं चावल का एक गासिया बिनणी खिलाती है। फिर बाजोट पर बिनणी के साथ बैठी हुई सभी महिलाएं, बिनणी को उसी चांदी के रुपये से लापसी एवं चावल का एक एक गासिया खिलाती हैं। तत्पश्चात जिठानी एवं ननदें, बिनणी के साथ भोजन करती हैं।
एक चौकी, दो गद्दी, बड़े कोर की परात, जल, दूध, चांदी का एक छल्ला, सात सुपारी, सात कोडी, एक रुपये के सात सिक्के, दो बड़ा मोटा तुवाल
आमने-सामने दो गद्दी लगा देते हैं। बीच में चौकी रखते हैं उसपर परात रखकर उस परात में पानी व दूध डाल देते हैं। वस्तु व हाथ दूध के पानी में दिखाई नहीं देने चाहिये, थोड़ी सी हल्दी भी डाल देते हैं। 7 सुपारी, 7 कोडी, रुपये के 7 सिक्के व चांदी का एक छल्ला डालते हैं। भाभियां व बहिनें बिनणी के पास बैठती हैं। बीन को दाहिना हाथ एवं बिनणी को दोनों हाथों को परात में रखने को कहते हैं। पश्चात् भाभी या बहिन उपरोक्त 7-7 चीजें व चांदी का छल्ला पानी में डालती है एवं बीन एवं बिनणी अपने हाथों से छल्ले को ढूंढ़ते हैं। इस प्रकार 7 बार या चार बार चीजें एवं छल्ला डालते हैं। इस खेल को जूवा-जुई कहते हैं। कौन जीतता है देखते हैं। प्रत्येक हार व जीत पर हँसी-मजाक करते हैं । अन्त में बिनणी को बीन अपनी अंगूठी पहनाता है।
जूवा-जूई खेलाने के पश्चात् चौकी एवं परात उठाकर वहां तुवाल बिछा देते हैं। बिनणी को बीन के दाहिने हाथ में बंधा कांकंण-डोरा दोनों हाथों से खोलने को कहते हैं। फिर बीन को सिर्फ दाहिने हाथ से बिनणी का कांकंण-डोरा खोलने को कहते हैं। फिर बिनणी को अपना कांकंण-डोरा बीन के हाथ में बांधने को कहते हैं एवं बीन को अपना कांकंण-डोरा बिनणी के हाथ में बांधने को कहते हैं। पश्चात दोनों एक दूसरे के पैर का कांकण-डोरा खोलते हैं एवं अपना कांकंण-डोरा दूसरे को बांधते हैं।
दो चौकी, तीन गद्दी, चौड़े मुंह की लाल कपड़े की एक थैली, एक गिन्नी, 200 नकद रुपये।
सिर-गूंथी एवं लखेसरी के बाद बिनणी को अच्छे कपड़े व गहने पहिनाकर एक गद्दी पर बैठा दें। थोड़ी जगह छोड़कर दो चौकी लगा दें, उन दोनों पर गद्दी बिछा दें। लाल कपड़े की थैली में एक गिन्नी एवं 200 नकद रुपये भर देते हैं। गिन्नी एवं रुपयों को मिक्स कर देते हैं। पश्चात् घर का बड़ा, लाल थैली का मुंह खोलकर बिनणी के सामने अपने हाथों से आगे करता है एवं बिनणी को अपने दोनों हाथों से थैली में से अधिक से अधिक सिक्के निकालने को कहता है। बिनणी दोनों हाथों के धोबे में अधिक से अधिक सिक्के निकालने का प्रयत्न करती है। निकाले हुये सिक्कों में देखा जाता है कि गिन्नी है अथवा नहीं। यदि गिन्नी आये तो उसे दे देते हैं एवं बिनणी की Lucky होने की सराहना करते हैं। दस्तूर के मुताविक यदि निकाले हुये सिक्को में गिन्नी नहीं हो तो भी थैली में से गिन्नी निकालकर बिनणी को घर का बड़ा दे देता है। बिनणी उनको प्रणाम करती है एवं घर का बड़ा आशिष देता है।
कोथली में हाथ घलाने के नेग के बाद पग पकड़ाई एवं मुंह दिखाई का नेग होता है। बिनणी के सहयोग हेतु एवं किसने क्या लिफाफा / Gift दिया, नोट करने के लिये ननद आदि बिनणी के पास बैठ जाती हैं। कोथली के नेग के बाद सर्वप्रथम घर का बड़ा पत्नी सहित चौकी पर बैठता है। बिनणी उनके दोनों पैर पकड़ती है। घर का बड़ा बिनणी को नेग का लिफाफा एवं गिफ्ट (जो देनी हो) वह बिनणी को देता है। बीन से बड़े क्रम से बड़े से छोटे परिवार के सदस्य, चौकी पर पति/पत्नी सहित बैठते हैं एवं पग पकड़ाई का नेग देते हैं। परिवार में जो प्रिय हों एवं सगे सास-ससुर की पग पकड़ाई में बिनणी को सहयोग देनेवाली ननद आदि, जो भी वे देते हैं उनसे और अधिक देने का आग्रह करती हैं। बड़ों की पग पकड़ाई के पश्चात् देवर कान- पकड़ाई कराने आता है। बिनणी देवर के दोनों कान पकड़ती है एवं नेग का लिफाफा देती है। पग पकड़ाई के पश्चात् सभी उपस्थित बड़े पुरुष बीन को घुमाते हैं एवं बीन को लिफाफा देते हैं। उपस्थित बड़ी महिलाएं बिनणी को घुमाती हैं ।
रात्रि भोजन आदि से निवृत होने के बाद रात को गीत गानेवाली महिलाओं से गीत गवाये जाते हैं। गीत गानेवाली महिलाओं को बुलाया जाता है। पूजा घर में भगवान की फोटो अथवा मूर्ति के सामने दीपक जलाते हैं। पहले चार गीत देवी-देवताओं के गाये जाते हैं, उसके बाद बधावा गाते हैं। गीत गानेवालियों को गुड़ और लिफाफा देते हैं।
बिनणी के कमरे को फूलों से सजाया जाता है। आवश्यक सामान रखा जाता है। चांदी के 2 ग्लास में केसर डालकर दूध, मेवा, मिठाई एवं चाकलेट रखी जाती है। बीन द्वारा बिनणी को First Night Gift का सामान दिया जाता है।
अच्छा दिन देखकर मायां उठाते हैं। बीन की मां एवं बीनणी उस दिन सिर धोती हैं। उस दिन शकुन की लापसी, चावल एवं बड़ी की रसोई बनाई जाती है। मां-पिताजी (अथवा जिन्होंने विवाह का कार्य सम्पन्न कराया हो), बीन एवं बिनणी चारों मायां के पास बैठकर पूजा करते हैं। लापसी, चावल का भोग लगाते हैं, नारियल वधारते हैं एवं मायां को धोक देते हैं। भूवा/बहिन चारों का आरता करती है। पिताजी आरता करनेवाली को नेग का लिफाफा देते हैं। बधावा के गीत गाते हैं।
विवाह के सभी कार्य गणेशजी की कृपा से निर्विघ्न संपन्न हुये हैं, इसलिये कृतज्ञता ज्ञापन हेतु पांच किलो चूरमा बनवाकर गणेशजी के मन्दिर में बीन बिनणी एवं बीन की माँ एवं पिताजी जाकर चूरमा चढ़ाते हैं। रुपये भी चढ़ाते हैं।
दो साड़ी, एक लिफाफा, मेहंदी, मिठाई, बिनणी के भाई जो लेने आये हैं एवं साथ में जो आदमी, ड्राईवर आये हैं उनके लिये लिफाफे।
अच्छा दिन देखकर बीनणी को पीहर जाने हेतु सीख देते हैं। सीख में दो साड़ी व लिफाफा, अन्य गिफ्ट (इच्छानुसार) एवं मिठाई साथ में भेजते हैं। बीनणी को मेहंदी लगाते हैं। (तापड़िया परिवार में जब पहलीबार बिनणी पीहर जाती है तब उसके दोनों हाथों में मेहंदी का लपेटा करते हैं। लपेटे के बाद बीनणी के दोनों हाथों की मुट्ठी बंद कराते हैं। इस दस्तूर का अर्थ है कि ससुराल की बातों को बंद मुट्ठी की तरह गुप्त रखे, चर्चा न करे)। बिनणी को तिलक कर साड़ी व सीख का लिफाफा देते हैं एवं गुड़ से मुंह जुठाते हैं। बिनणी को लेने के लिये जो भाई आये हैं उन्हें भोजन / नाश्ता कराके सीख का लिफाफा देते हैं। उनके साथ आये आदमी, ड्राईवर को भी नाश्ता / भोजन कराकर लिफाफा देते हैं।
लाल रंग का लाख का चूड़ा, रोळी, चावल, मेहंदी, काली ऊन, पगेलागनी एवं ब्राह्मणी हेतु लिफाफे ।
विवाह के 7/11 दिन अथवा सवा महीने बाद पण्डितजी से बीन के नाम से चन्द्रमा दिखाकर शुभ समय में बिनणी के हाथों में हाथी दांत का पहिना हुआ ब्यावला चूड़ा बडा कराते हैं । (यानी बदलवाते हैं।) तारा, मळमास, सावण और रिक्ता तिथि, अमावश्या को चूड़ा बड़ा नहीं कराते हैं। सर्वप्रथम खरीदकर लाये हुये लाख के चूड़े में से एक चूड़ी निकालकर किसी ब्राह्मणी को दें। बिनणी, ब्राह्मणी को पगे लागकर लिफाफा दे। फिर दाहिने हाथ का हाथी दांत का चूड़ा खोलकर लाल लाख की पांच चूड़ी पहिनावें । फिर बायें हाथ का हाथी दांत का चूड़ा खोलकर लाल लाख की छह चूड़ी पहिनावें। टीका करें एवं मेहंदी के नाखून लगायें। शकुन हेतु दोनों हाथों की एक एक चूड़ी में काली ऊन बांधें। फिर बिनणी को शकुन का यह लाल लाख का चूड़ा, बड़ीसासु/सासु/काकेसासु में से कोई एक पहिनावे। बिनणी पहिनानेवाली सासु को पगेलागणी दे। सात दिन बाद शुभ दिन देखकर लाख का चूड़ा खोलकर सामान्य चूड़ा पहिनावें ।
बेटे का जैसे झडूला उतारते हैं, वैसे ही विवाह के बाद गठजोड़े से जात लगती है । चतुर्मास, श्राद्ध पक्ष, मलमास एवं अधिक मास में जात नहीं लगती है। भरे भादवे (अर्थात् पूरे भादवा महीने में) जात लग सकती है। जात के लिये बीन- बिनणी के साथ में बड़ी मां अथवा मां अथवा काकी साथ में जाती है।
जात पहले सालासर, फिर क्रमशः डूंगरहनुमानजी, डाबड़ी की माताजी, पाबोलाव हनुमानजी एवं लक्ष्मीजी के मन्दिर जाते हैं। सालासर में सवामणी करते हैं। गठजोड़े से हनुमानजी की पूजा करते हैं। नारियल बधारते हैं, माला चढ़ाते हैं, सवामणी के प्रसाद का भोग लगाते हैं, रुपये चढ़ाते हैं, धोक देते हैं, परिक्रमा करते हैं। फिर डूंगरहनुमानजी जाते हैं, वहाँ भी गठजोड़ा से हनुमानजी की पूजा करते हैं, नारियल बधारते हैं, माला चढ़ाते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं, रुपये चढ़ाते हैं, धोक देते हैं, परिक्रमा करते हैं। फिर डाबड़ी जाते हैं, वहां भी गठजोड़ा से माताजी की पूजा करते हैं, नारियल बधारते हैं, माला चढ़ाते हैं, रुपये चढ़ाते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं, धोक देते हैं, परिक्रमा करते हैं। फिर पाबोलाव जाकर गठजोड़े से हनुमानजी की पूजा करते हैं, नारियल बधारते हैं, माला चढ़ाते हैं, रुपये व प्रसाद चढ़ाते हैं, धोक देते हैं, परिक्रमा करते हैं। उसके बाद लक्ष्मीजी के मन्दिर जाते हैं। (तापड़िया परिवार में विवाह हो तो लक्ष्मीजी की नई पोशाक बनवाते हैं, गहना चढ़ाते हैं, माला पहिनाते हैं, प्रसाद व रुपये चढ़ाते हैं। आरती करते हैं। चरणामृत, तुलसी व प्रसाद लेकर लक्ष्मीजी को प्रणाम करके परिक्रमा करते हैं।) फिर अपने घर आते हैं। यदि बहू पहली बार गांव आई हो तो अपने मुनीमजी को बोलकर घर के चौक में पगल्या मांडते हैं व 2 चौकी लगा देते हैं। घर में प्रवेश करने पर बीन-बिनणी को चौकी पर बैठाकर तिलक करते हैं व गुड़ से मुंह ओठाते हैं। फिर घर की ठाकुरवाड़ी में दर्शन कराते हैं। घर में रसोई - लापसी, चावल, बड़ी की सब्जी बनवाते हैं।