The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use real content in the Consulting Process, anytime you reach a review point you’ll end up reviewing and negotiating the content itself and not the design.
Consultationजब बहू या बेटी पहली बार गर्भवती होती है तो सातवें या नवें महीने में पीहर या ससुरालवाले अच्छा दिन देखकर साध पुराते हैं। (साध पुराने का मतलब है कि गर्भवती महिला की मनोकामना पूरी करते हैं।) पुराने समय में ससुराल-परिवार के सभी घरवाले गर्भवती बहुएं को अपने घर बुलाकर जिमाते थे। (तापड़िया परिवार में ओख के कारण साध-पुराई का दस्तूर नहीं होता है।)
बेटी का ससुराल उसी शहर में हो तो पीहरवाले बेटी को अपने घर बुलाकर मेहंदी लगवाते हैं, साड़ी पहिनाते हैं, पाटे पर बैठाकर खोळ भरते हैं। ससुराल पक्ष में जो छोटे हों एवं बेटी की सहेलियों/Friends को बुलाते हैं, सभी को भोजन कराके बेटी को ससुराल भेजते हैं। साथ में सासु की दो साड़ी, पगेलागणी के लिफाफे, जंवाई के कपड़े एवं लिफाफा और ससुरालवालों के लिये मिठाई व फल भेजते हैं। बेटी का ससुराल दूसरे शहर में हो तो लज लड़कीवाले उपरोक्त नेग भेज देते हैं। ससुराल पक्ष में दस्तूर व Function हो एवं बहू का पीहर उसी गांव / शहर में हो तो बहू को मेहंदी लगवाते हैं, साड़ी पहिनाते हैं, बहू के पीहर में बराबर एवं छोटे हैं उन्हें बुलाते हैं, बहू की सहेलियां/Friends को भी बुलाते हैं। सबको भोजन कराते हैं। बहू को पाटे पर बैठाकर खोळ भरते हैं। बहू पगेलागणी देती है।
बहू के पीहर से जो घेवर या मिठाई आये सर्वप्रथम उसमें कुछ पर कुमकुम के छींटे देते हैं एवं उन्हें मन्दिर में चढ़ाने भेजते हैं। शेष को अपने परिवार व घरों में बांटते हैं।
नई Generation आजकल साध के स्थान पर Baby Shower का कार्यक्रम करती है। जच्चा की उम्र की घर की बहुवें एवं सहेलियां मिलकर होनेवाली मां के लिए यह कार्यक्रम करती हैं। उपस्थित होनेवाली परिवार सदस्याएं एवं सहेलियां, जच्चा की पसन्द के अलग अलग व्यंजन बनाकर जच्चा के लाड- चाव के लिए लाती हैं। तरह तरह के Games खेलती हैं। आधा नीला व आधा गुलाबी रंग का Cake जच्चा से कटवाती हैं। आँखों पर पट्टी बांधकर जच्चा Cake काटती है। नीले रंग की तरफ का Cake कटा तो होनेवाला शिशु लड़का होगा और गुलाबी रंग का Cake कटा तो लड़की होगी ऐसा माना जाता है। उपस्थित सहेलियां व परिवार सदस्याएं जच्चा को Gift भी देती हैं।
हॉस्पिटलवाले लिस्ट देते हैं उस मुताविक सारी तैयारी होती है।
ऊंवारी का लिफाफा, घर के बुज़ुर्ग की धोती, बधाई के लिफाफे, मिठाई/Chocolates, चांदी की कटोरी एवं सोने की शलाका (जिस पर ॐ अंकित हो) व शहद। लेबर रूम में ले जाते समय जच्चा की ऊंवारी करते हैं। ऊंवारी के रुपयों से गाय को गुड़ देते हैं।
शिशु के जन्म पर सबसे पहले मां-बाप व घरवाले 'ओऽम् वेदोऽसि' शिशु के दोनों कानों में तीन-तीन बार पहले दाहिने कान फिर बायें कान में बोलते है।
नवजात शिशु को नहलाकर सर्वप्रथम घर के बुज़ुर्ग की धोती में लपेटते हैं। सबको बधाई देते हैं। सगों के यहां मिठाई भेजी जाती है। बधाईदार जो आता है उसे बधाई देते हैं। परिवार द्वारा मिठाई बांटी जाती है।
शिशु को घर का बड़ा जन्मघुट्टी देता है। (जन्मघुट्टी चांदी की कटोरी में सोने की शलाका द्वारा शहद से बच्चे की जीभ पर ॐ लिखते हैं।) बच्चे एवं जन्मघुट्टी देनेवाले की सुविधा हेतु सोने की शलाका में ही ॐ बनवा लेना चाहिये।
कांसी या चांदी की थाली, थाली में रोळी का सांखिया, बेलन, नेग का लिफाफा ।
यह लड़का होने पर होता है। लड़का होने पर कांसे की थाली (आजकल चांदी की थाली) को बेलन से, घर के बड़े बजाते हैं। उन्हें नेग दिया जाता है।
एक प्लेट, रोळी, चावल, कंघी, रुई, कच्चा दूध, पानी की एक गड्डी, नेग का लिफाफा ।
शिशु जन्म यदि दिन में हो तो सूर्यास्त के बाद, यदि जन्म रात में हो तो दिन निकलने से पहले एक कुमारी लड़की से आंचल खुलाई का नेग कराते हैं। जच्चा व बच्चे को तिलक करते हैं। (बच्चे को तिलक आडा करते हैं।) गड्डी के पानी में थोड़ा-सा दूध मिलाते हैं। उसमें कंघे को डुबाकर सात बार जच्चा के दोनों स्तनों की निपल पर कुमारी कन्या फिराती है। उसके बाद भीगी हुई रुई से निपलों को अच्छी तरह सफाई करके बच्चे को दूध पिलाते हैं। लड़की को नेग देते हैं।
बादाम तेल या घरेलू घी, लोई के लिये (आटा, हल्दी, तेल), नीम के पत्तों का पानी।
अस्पताल से घर लाने का अच्छा दिन व समय देखकर लाते हैं। जच्चा बच्चे को गोद में लेकर साड़ी के पल्ले से ढ़ककर पहले दायां (Right) पांव रखकर घर में आती है। बादाम का तेल जच्चा के सिर में घर लाने के बाद लगवाते हैं। बच्चे की लोई (आटे में हल्दी व तेल) करते हैं। नीम के पत्तों को पानी में डालकर उबालते हैं। उससे जच्चा व बच्चे को नहलाते हैं। (नीम का पानी ऐंटीसेपटिक होता है ।)
एक कॉपी, एक लाल पेन, एक प्लेट में थोड़ा-सा चावल, गुड़, एक प्लेन कागज, रोळी, चावल, मेहंदी, काजल उपाड़ने के लिए एक बड़ा एवं एक छोटा दिया, काले रंग की रेशमी धागे की हाथ-पांव की पंचियें व तागड़ी बनाई जाती है। (तापड़िया परिवार में ओख है इसलिये पूंचिये एवं तागड़ी हरे रंग की होती हैं ।)
छठे दिन रात में छठी की पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन विधाता बच्चे का भाग्य लिखती है। एक कॉपी, एक लाल पेन खोलकर रखते हैं। एक प्लेट में थोड़े चावल व गुड़ रखते हैं। एक काग़ज़ पर रोळी से त्रिशूल (U) मांडते हैं। उस काग़ज़ को दिवाल पर चिपका देते हैं । त्रिशूल की पूजा करते हैं। रोळी-चावल चढ़ाते हैं। जच्चा को तिलक करते हैं। बच्चे को तिलक करते हैं। (बच्चे को तिलक आडा करते हैं।) काजल ऊपाड़ कर बच्चे को लगाते हैं। (छोटे दिया में तिल का तेल, उसमें बत्ती बनाकर ऊपर बड़ा दिया उल्टा रखने पर अन्दर के भाग में काजल जमा हो जाता है, जिसे काजल उपाड़ना कहते हैं।) जच्चा को मेहंदी के नाखून लगाते हैं। बच्चे को काले रंग की पूंचियां दोनों हाथों व पांवों में एवं कमर में काले रंग की तागड़ी पहनाते हैं। (तापड़िया परिवार में हरे रंग की होती हैं।) न्हावण के दिन फिर नयी पूंचियां पहिना सकते हैं। (पर तापड़िया परिवार में फिर भी हरे रंग की ही होती हैं।)
शिशु होने के बाद जच्चा को गरम दूध पिलायें। दशमूल काढ़े की एक पुड़िया आधा लीटर पानी में मन्दी आंच पर पानी आधा रहने तक उबालें। इसे छानकर डेढ़ चम्मच पीसी हुई मिश्री मिलाकर गरम-गरम धीरे-धीरे पिलायें। यह काढ़ा 10 दिन तक सुबह खाली पेट पिलाकर ओढ़ाकर जच्चा को सुला दें।
सामग्री- 2 टेबलस्पून आटा, नीम्बू की साइज का देसी गुड़, 3 चम्मच घी। (प्रतिदिन की)
विधि- डेढ़ कप पानी में गुड़ डालकर उबालकर छान लें। घी गरम करके आटा को धीमी आँच में सेक लें। सेकने पर गुड़ के पानी को धीरे-धीरे डाल दें। 2-3 मिनट उबालकर पतला गरम गरम जच्चा को पिला दें। (इस प्रकार बने पतले लपटे को रई कहते हैं।)
सामग्री - पीसी हुई अजवायन 4 टेबलस्पून, पीसी हुई मिश्री 3 टेबलस्पून, घी 4 टेबलस्पून । (प्रतिदिन की)
विधि- ेढ़ कप पानी में पीसी हुई मिश्री मिलाकर उबाल लें। कढ़ाई में घी गरम कर अजवायन को थोड़ा सेक लें। फिर पीसी हुई मिश्री का पानी धीरे-धीरे डाल दें। एक से दो मिनट उबालकर उतार लें व गरम-गरम जच्चा को पिला दें।
गुड़ / आटे की एवं अजवायन दोनों की रई साथ साथ देनी है।
अजवायन की रई, गुड़/आटे की रई के दो घण्टे बाद में दें। खाने के बाद ओढ़ाकर सुला दें।
गुड़, आटे एवं अजवाइन की रई 5 दिन देने के बाद छठे दिन से हल्दी दें। हल्दी 5 दिन में कुल 20 ग्राम, एक ग्लास दूध के साथ देनी है। थोड़े से दूध में एक टी स्पून हल्दी मिलाकर दे दें। ऊपर बाकी का दूध पिला दें। बाद में 5 से 7 बादाम खिला दें।
छठे दिन से हल्दी 5 दिन देने के बाद ग्यारहवें दिन से सौंठ 5 दिन दें। हल्दी एवं सौंठ के साथ गौन्द की रई भी दें।
सामग्री- प्रतिदिन की- 2 चम्मच आटा, 2 चम्मच पीसी हुई मिश्री, 4 चम्मच घी, एक चम्मच गौन्द, एक चम्मच बादाम का चूरा। (सौंठ देने के चार-पांच दिन पहले सौंठ को घी में भीगो दें। जब बनायें तब उसके 5 भाग कर लें। एक एक भाग 5 दिन में दें।)
विधि- घी गरम करके आटा सेक लें। थोड़ा सिकने पर बादाम डाल दें, फिर गौन्द डाल दें। गौन्द फूल जाये तब सौंठ डाल दें। एक-दो मिनट हिलाकर उतार लें। ठंडा होनेपर पीसी हुई मिश्री मिलाकर जच्चा को दें।
हल्दी व सौंठ के साथ आटे अथवा बादाम का सीरा भी दें।
हल्दी 5 दिन एवं सौंठ 5 दिन इस प्रकार कुल 10 दिन दें, साथ में गौन्द की रई भी दें।
सामग्री- गौन्द 2 चम्मच, पीसी हुई मिश्री 3 चम्मच, घी 4 चम्मच।
विधि- डेढ़ कप पानी में पीसी हुई मिश्री मिलाकर उबाल लें। कढ़ाई में घी गर्म करके गौन्द फुला लें। (पसन्द हो तो जरासी काली मिर्च डाल दें।) फिर पीसी हुई मिश्री का पानी धीरे-धीरे मिलाकर 2-3 उबाल लगा लें व पिला दें।
हल्दी- सौंठ के साथ में आटे का या बादाम का सीरा भी देना चाहिये।
सामग्री- 50 ग्राम कुटे हुये पीपलामूल की 10 पुड़िया बना लें। बादाम की गुली, दूध।
विधि- थोड़े-से दूध में एक पुड़िया पीपलामूल मिलाकर पिला दें। एक ग्लास का बचा दूध पिला दें। ऊपर से आठ-दस बादाम खिला दें और तुरन्त सुला दें। यह रात को सोते समय देना चाहिये। कमरे की खिड़कियां खुली रखना ठीक होगा ताकि हवा का परहेज नहीं रखना पड़े।
पीपलामूल दें तब जच्चा को दिन में भी ज्यादा आराम ही करना चाहिये।
यह न्हावण के बाद दें तो ज्यादा अच्छा रहता है।
पीपलामूल जितने दिन दें, दिन में बादाम का सीरा भी देना चाहिये।
पीपलामूल लेने के कारण यदि रात को नींद नहीं आये तो दूसरे दिन न दें। तीसरे दिन आधी मात्रा में दें। यदि आधी मात्रा से भी नींद नहीं आये तो पीपलामूल बन्द कर दें। आधी मात्रा से नींद की तकलीफ न हो तो आधी मात्रा 10 दिन में देते रहें।
सामग्री - प्रतिदिन के लिये- दो टेबलस्पून पीसी हुयी अजवायन । एक टेबलस्पून मोटे पीसे हुये बादाम। एक चम्मच गौन्द, 2 चम्मच पीसी हुई मिश्री, 2 चम्मच घी, 2 चम्मच आटा।
विधि- घी गरम करके आटे को हल्का-सा सेक लें। उसमें बादाम डाल दें। बादाम सिकने पर अजवायन डाल दें। तुरन्त बाद गौन्द डाल दें। गौन्द फूल जाय तब नीचे उतार लें। ठण्डा होनेपर पीसी हुई मिश्री डाल दें।
उपरोक्त विधि से प्रतिदिन बनाकर दें।
सामग्री- 200 ग्राम आटा, 100 ग्राम गौन्द, 100 ग्राम बादाम का चूरा, 125 ग्राम पीसी हुई मिश्री, 125 ग्राम घी।
विधि- आटा को घी में गहरा बादामी सेक लें। फिर बादाम का चूरा डाल दें। बादाम चूरा थोड़ा सिक जाय तो गौन्द डाल दें, गौन्द फूल जाय तब नीचे उतारकर ठण्डा होने दें। पीसी हुई मिश्री मिला दें। इसे खुला ही रखें, लड्डू नहीं सांधें। जब दें तब गरम करके दें। यह सामग्री 15 दिन के लिये है। यदि कम हो तो इसी प्रमाण से और बना लें।
प्रतिदिन की सामग्री- 25 बादाम, 3 चम्मच पीसी हुई मिश्री, 4 चम्मच घी, दूध ।
विधि- बादाम दो घण्टे भीगोकर छीलकर मिक्सी में पीस लें। घी को गरम कर लें। एक चम्मच आटा डाल दें। एक मिनट हिला लें फिर बादाम डाल दें। गहरा बादामी सिक जावे तब गरम दूध आवश्यक मात्रा में ही डालें। सीरा गाढ़ा हो तब उसमें पीसी हुई मिश्री डालकर थोड़ा हिलाकर उतार लें।
उपरोक्त विधि से प्रतिदिन बनाते रहें। 10 दिन जरूर खाना चाहिये।
कुल सामग्री- 200 ग्राम साबूत धनिया को पीस लें, 100 ग्राम आटा, 100 ग्राम गौन्द, 100 ग्राम बादाम का चूरा, 200 ग्राम घी, 300 ग्राम पीसी हुई मिश्री ।
विधि- आटे को घी में थोड़ा सेककर बादाम का चूरा डालकर सेक लें। फिर पिसा हुआ धनिया डाल दें। थोड़ा सेक लें। थोड़ा सिकने पर गौन्द डाल दें। गौन्द फूल जाने पर नीचे उतार लें। ठण्डा होने पर पीसी हुई मिश्री डालकर रख लें। थोड़ा थोड़ा रोज दें।
उपरोक्त सामग्री बनी हुई पूरी खानी चाहिये। थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाकर पूरी करनी चाहिये।
थोड़े से साबूत बादाम, घी में तलकर नमक व काली मिर्च लगाकर रखें। दिन में 5 से 7 बादाम 2-3 वार खिलायें। यह प्रयोग मुंह के स्वाद को ठीक करने के लिये है।
ताल मखाना भी सेककर रख लें। नमक लगाकर स्वाद के लिये ले सकते हैं।
जच्चा हेतु भोजन सम्बन्धी निर्देश में सर्वप्रथम गुड़ / आटे एवं अजवाइन की रई, साथ साथ, 5 दिन देनी हैं। तत्पश्चात छठे दिन से 5 दिन हल्दी देनी है। उसके बाद 5 दिन सौंठ देनी है। हल्दी एवं सौंठ कुल 10 दिन दें तब साथ में गौन्द की रई भी दशों दिन देनी चाहिये। इस प्रकार 15 दिन उपरोक्त भोजन के पश्चात् 10 दिन पीपलामूल देनी है, जिसके साथ बादाम का सीरा एवं गौन्द के लड्डू भी देने हैं। पीपलामूल 10 दिन देने के बाद 15 दिन अजवाइन देनी है जिसके साथ भी बादाम का सीरा एवं गौन्द के लड्डू देने चाहिये। इस प्रकार कुल 40 दिन उपरोक्त विशिष्ठ भोजन जच्चा को देना ही चाहिये। यदि जच्चा उपरोक्त Quantity व भोजन 40 दिन में पूरा नहीं ले सके तो जितने दिनों में पूरी Quantityले सके उतने दिन लेकर पूरी करनी चाहिये। उपरोक्त सभी सामग्री जच्चा के शरीर को निरोग, बलवान एवं anticeptic का काम करती है।
उपरोक्त सामग्री की तासीर थोड़ी गरम की है इसलिये उपरोक्त सामग्री के सेवन के पश्चात् सात दिन धनिया के लड्डू का सेवन निर्शिष्ठ मात्रा में करना चाहिये। यदि निर्शिष्ठ मात्रा को सात दिन में जच्चा सेवन नहीं कर सके तो जितने दिनों में पूरा कर सके, करना ही चाहिये। साथ में पूरे 40 दिन अथवा जब तक उपरोक्त भोजन पूरा हो तब तक बताये गये खाने का परहेज पालन करना चाहिये। शिशु को स्वस्थ एवं पर्याप्त मात्रा में दूध लम्बे समय तक मिलता रहे, इस हेतु उपरोक्त भोजन एवं परहेज के साथ, जीरा, साबूदाना, बाजरी के लपटे का प्रयोग लम्बे समय तक करते रहना चाहिये।
बेटी को जब पहला बच्चा होता है तब बेटी को छुछक देते हैं। प्रसव जब पीहर में होता है तो पीहर से ससुराल जब बेटी बच्चे को लेकर जाती है तब उसके साथ छुछक भेजते हैं। जब प्रसव ससुराल में होता है तो पिहरवाले छुछक लेकर न्हावण पर आते हैं।
पीछे की एक साड़ी, 7/10 साड़ियां (अथवा 2 साड़ी व बाकी की ड्रेस ), गहना अपनी इच्छानुसार। बच्चे को (न्हावण पर पहनाने की लाल ड्रेस ), बच्चे के लिये अन्य 11 से 21 जोड़ी कपड़े, चद्दर, सेट, छुट-पुट सामान, पालना, चांदी के बर्तन, गहना इच्छानुसार, लिफाफा, जंवाई के लिये कपड़े। सगे लेते हों तो सासु-ससुर/काके सासु/भूवा सासु / देवर- देवरानी/ननद/ननदोई के लिये इच्छानुसार कपड़े, बेटी के ससुराल में काम करनेवालों के लिये लिफाफे या कपड़े एवं मिठाई ।
जेष्ट, मूल, मघा, असलेखा नक्षत्र में जन्म हो तो पण्डितजी को बुलाकर सामग्री लिखा लेते हैं। न्हावण के समय पूजा होती है। डाकोत को दान देते हैं। हवन होता है। पूजा जच्चा द्वारा गठजोड़े से होती है। बारों में जन्म नहीं हो तो पूजा में जच्चा अकेली बैठती है।
हवन व पूजा का सामान पण्डितजी लाते हैं।
राती जुगा के लिए दीपक, बत्ती, घी, ब्राह्मणियों के लिए लिफाफे, मेहंदी, पीठी के लिए (आटा, हल्दी, तेल, दही), नीम का पानी, गंगाजल, गोमुत्र, बान्दरवाल के लिए आम के पत्ते, मोळी, जच्चा (तांबा) (चरन्दी) (चान्दी) मानल्या भैरूंजी मात ाजी (ऊपर पाव) हनुमानजी (सोना) भरूंनी मावल्यां श्यामजी (चान्दी) (चान्दी) (चान्दी) (नीचे पाव) के लिए साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, पीळा, गहने, नथ, बच्चे के लिए एक पुराना पहले का काम लिया झबला, लाल कपड़े, टोपी, मोजा, ओढ़ने की चद्दर, काले रंग की चार पूंची एवं तागड़ी, (परन्तु तापड़िया परिवार में ये सभी हरे रंग की होती हैं।) नजरिया (काली चीढ़+सोना का वोल का) रेशमी धागा या सोने के तार में पिरोकर अथवा सोने के दो कड़े, नारियल, नेग व ऊंवारी के लिफाफे, चांदी की कटोरी में घी, पतासा, नारियल की रस्सी, ब्लाउज पीस, 7 राखी (राखी-लूणराई, चांदी, लाख, सोना, लोहा, ताम्बा के गोलीये एवं कोडी को मोळी में बांधकर बनती है।) एक मादळिया जिसमें सात फुलड़े इस क्रम से होते हैं- (1) ताम्बे की मावल्यांजी (2) चांदी के भेरूजी ऊपर पांववाले (3) चांदी की माताजी (4) सोने के हनुमानजी (5) चांदी के भेरूजी नीचे पांववाले (6) चांदी की मावल्यांजी (7) चांदी के श्यामजी इसी क्रम में मादळिया पिरोया जाता है। लापसी, चावल, कच्ची बड़ी का साग, एक ब्लाउज पीस, नकद रुपये, सफेद चोकोर कपड़े का पोतड़ा- जिसके चारों पल्ले हल्दी से रंगे हुये एवं बीच में हल्दी से गोल रंगा हुआ होता है। बीच के गोळ के चारों तरफ हाथ की मुट्ठी से 5 पगल्या बना देते हैं। थळी पूजा के लिये गोबर, रोळी, मोळी, गुड़, मूंग, दूब, रुपये।
न्हावण के समय पोतड़ा को बच्चे के नीचे लगा देते हैं। गीला न हो इसका ध्यान रखना चाहिये। जच्चा जब पूजा करने जाती है तब पलंग को खाली नहीं रखते हैं। किसी लड़के को बैठा देते हैं। उसे तिलक कर नेग देते हैं। फिर पलंग पर नारियल, रख देते हैं। एक दूसरा लड़का जच्चा को पलंग से उतरने के बाद उसका पल्लू पकड़कर पूजा की चौकी तक ले जाता है उसे भी नेग देते हैं। जच्चा बच्चे को गोद में लेकर साड़ी से ढ़ककर ले जाती है। जब जच्चा कमरे निकले तो पहले दायां पांव थली के बाहर एवं बायां पांव थली के अंदर रखना चाहिये। उस समय घर की बड़ी महिला-- दादे सासु/बड़ीया सासु/सासु/काके सासु (कोई एक) जच्चा को घी, पतासा मुंह में देती है। जहां न्हावण की पूजा कराते हैं वहां तणी बांधते हैं। नारियल की दो नई रस्सियों के बीच एक ब्लाउज पीस में नमक, राई बांधकर उसे बीच में से चार कोने करते हैं। फिर इसे क्रोस करते हुये चार कोने में पूजा स्थल के ऊपर बांध देते हैं इसे तणी कहते हैं। आजकल तणी मोळी की बांधते हैं। तणी देवर बांधता है एवं उसे नेग दिया जाता है।
न्हावण की राखी बांधी जाती है। राखी -- जच्चा, बच्चा, तणी, पालना, दादा, बाप, भूवा इस प्रकार 7 व्यक्तियों को बांधते हैं। अब प्रचलन हो गया है कि सभी उपस्थित घरवाले स्त्री- पुरुषों को बांधते हैं। घर में लापसी, चावल व कच्ची बड़ी का साग करते हैं। लापसी चावल के 7 लावणा देवी-देवताओं के लिये निकालते हैं। लावणा में पहले लापसी, उसके ऊपर चावल एवं उसपर चीनी एवं उसपर घी को लावणा कहते हैं। जब न्हावण का काम शुरु हो तब पांच गीत देवी-देवताओं को गाते हैं। (विनायकजी, बालाजी, माताजी, श्यामजी व पितरजी) के गीत गाते हैं। (गीत अध्याय 8 में दिये गये हैं) फिर न्हावण के गीत गाते हैं। पीळा, पालना आदि गाते हैं।
पण्डितजी से अच्छा मुहूर्त दिखाकर जच्चा एवं बच्चा का न्हावण कराते हैं। पूजा एवं हवन की सामग्री पण्डितजी लाते हैं। न्हावण बच्चे के जन्म के 10 रात के बाद ठीक होता है ताकि सूवा निकल जावे। अगर बच्चा बारों में हो तो जैसे- (जेष्ट अथवा मूल में हो तो न्हावण 27 दिन बाद का होता है। जलवा भी उसी दिन होती है। अगर (मघा अथवा असलेखा नक्षत्र) में हो तो न्हावण 13 दिन बाद का होता है। बारां नक्षत्र की पूजा भी साथ ही होती है। जलवा भी उसी दिन होती है। न्हावण की पहली रात को राती जुगा होता है। राती जुगा में भगवान के सामने दीपक जलाकर देवी- देवता (विनायकजी, बालाजी, माताजी, श्यामजी, पितरजी) के गीत गाते हैं। जच्चा को मेहंदी के नाखून लगाते हैं। न्हावणवाले दिन सुबह जच्चा की पीठी करके सर में थोड़ा-सा सगुन का दही लगाकर शेम्पू कर देते हैं। नीम के पानी से नहला देते हैं। उसमें थोड़ा-सा गोमुत्र मिला देते हैं। बच्चे को लोई (आटा+हल्दी+तेल) करके नहला देते हैं। ऊपर से नीम के पानी से नहला देते हैं। (नीम का पानी ऐंटीसेपटीक होता है।) न्हावणवाले दिन घर में व परिवार के सभी घरों में बान्दरवाल बांधते हैं । बान्दरवाल आम के पत्तों को मोळी से बांधकर बनाते हैं। बान्दरवाल Maingate के दरवाजे के बाहर बांधते हैं। बान्दरवाल बांधनेवाले को नेग दिया जाता है। जच्चा को पीले रंग की या कोई भी सुरंगे (पीली, केसरी, गुलनार, पीच) रंग की भारी साड़ी पहना देते हैं। ऊपर से पीळा का ओढ़ना ओढ़ा देते हैं। ( नया नहीं ओढ़ाते हैं, घर में पहले से काम लिया हुआ हो वही ओढ़ा देते हैं ।) बालों को मोळी से बांध देते हैं। गहने पहना देते हैं। नथ पहना देते हैं। टीका या बोर नहीं पहनाते। बच्चे को पहले अन्दर पुराना झबला पहना देते हैं। ऊपर लाल कपड़े ननिहाल से आए हुए पहना देते हैं। (अगर न्हावण पीहर में हो तो बच्चे के कपड़े दादा/पिता के घर से आते हैं। पीळा भी दादा/पिता के घर से आता है। दादा/पिता के घर से आये हुये कपड़े बच्चे को पहनाते हैं ।) फिर मादळिया पहिनाकर दोनों हाथों एवं पांवों में काले रंग के धागे से बांटकर दो पूंची एवं एक तागड़ी पहना देते हैं। (तापड़िया परिवार में ओख के कारण हरे रंग की पूंची एवं तागड़ी होती है।) उसके बाद नजरिया या कड़ा आदि पहना देते हैं।
सर्वप्रथम पण्डितजी जच्चा से देवताओं की पूजा कराते हैं। फिर जच्चा से हवन कराते हैं। तत्पश्चात जच्चा को शिशु सहित हवन व देवताओं की चार परिक्रमा कराते हैं। पण्डितजी शिशु का नाम निकालते हैं। पण्डितजी नाम बच्चे के कान में कहते हैं। पंडितजी शिशु की कुण्डली बनाते हैं। (आजकल पण्डितजी बनाकर ही लाते हैं ।) घर के बड़े को बुलाकर पण्डितजी पहले तिलक करते हैं, मोळी बांधते हैं एवं उनके हाथ में कुण्डली देते हैं। पण्डितजी को नेग दिया जाता है। पूजा व हवन के बाद बहिन या भूवा आरता करती है। आरते का नेग दिया जाता है। छात में (नाई या नौकर जच्चा के पीछे गमछा फैलाकर खड़ा होता है उसे छात कहते हैं) रुपये दिये जाते हैं। पूजा के बाद जच्चा का भाई पीळा ओढ़ाता है। (पीळा पीहर से आता है)। जच्चा से, पूजा के बाद, रसोई घर की दहलीज पर गोबर रखकर जच्चा से थली-पूजा कराई जाती है। रोळी, चावल, मूंग, दूब, सवा रुपया रखकर जच्चा पूजा करती है। बाद में रसोई में किसी लड़के को खड़ा कर देते हैं। (पांच-सात मिनट खड़ा रखते हैं) व शकुन के लिये मूंग रसोई में डाल देते हैं । जापा यदि पीहर में हो तो थळी पूजन के बाद ससुराल से आया हुआ पीळा जच्चा को ओढ़ा देते हैं। पीळा उस दिन घड़ी नहीं करते हैं। दूसरे दिन करते हैं।
परिवार में जब प्रपौत्र जन्म लेता है तो पड़दादा व पड़दादी को सोने की सीढ़ी चढ़ाते हैं। इसको दसोटन कहते हैं। आज की नई भाषा में इसे स्वर्ण महोत्सव भी कहते हैं । यह सौभाग्य से ही प्राप्त होता है क्योंकि चार पीढ़ी के एक साथ होने से ही यह संभव है। इसका कार्यक्रम धूम-धाम से मनाया जाता है। परिवार की बहिन बेटियों, जच्चा के पीहरवालों एवं अपने मित्रों को बुलाते हैं । बधाई बांटी जाती है। परिवारवालों को एवं मित्रों को मिठाई भेजते हैं। बड़ा भोज करते हैं। पुराने समय में मुनीम एवं घर में काम करनेवालों को गहना व रुपये देते थे व पेचा अथवा साफा बंधवाते थे। मोटेतौर पर खुशीस्वरुप बधाई बांटी जाती है।
नहावणवाले दिन नामकरण संस्कार के बाद अथवा सुविधा के दिन लाल रेशम के कपड़े में अढ़ाई किलो चने की दाल को रखकर उसके ऊपर सोने की सीढ़ी बनाकर रखते हैं। पड़दादा एवं पड़दादी प्रपौत्र को गोद में लेकर सोने की सीढ़ी को एक पांव से छूते हैं। कुछ लोग (सोने को पांव लगाना ठीक नहीं मानते, इसलिये वे हाथ से सीढ़ी को छूते हैं ।)
(दरवाजे के दायीं तरफ सूरज और बायीं तरफ सांखिया मांडना- इसे सांखिया पुराना कहते हैं) रोळी, चावल, गुड़, नकद रुपया, ननद का नेग। (इच्छानुसार जो देना हो) यह पूजा लड़का हो तब होती है।
थली पूजा कर जब जच्चा कमरे में वापस जावे तब लड़का हो तो ननद से सांखिया पुराते हैं।(अर्थात् सांखिया की पूजा जच्चा से ननद कराती है।) सांखिया पुराई के लिये जच्चा के कमरे के दरवाजे पर गोबर से दायीं तरफ सूरज एवं बायीं तरफ सांखिया मांडते हैं। जच्चा, रोळी, मोळी, चावल, गुड़ से सांखिया की पूजा करती है । सांखिया के बीच चांदी का रुपया लगाती है। जच्चा ननद को सांखिया पुराई का नेग देती है। पलंग पर बैठने के बाद कांसा निकालते हैं। (लापसी, चावल, एक ब्लाउज व रुपये को कांसा कहते हैं।) कांसा के ऊपर जच्चा रोळी के छींटे देती है एवं हाथ जोड़ती है। नायण या दैया को कांसा दिया जाता है। इसके बाद लापसी, चावल व बड़ी की सब्जी से जच्चा का मुँह जुठाते हैं।
एक चौकी, दो गद्दी, एक पाटा, तेल, कंघा, मेण, रोळी, मोळी, चावल, पानी की गड्डी, माथे में लगाने के लिए बोर या टीका, नथ, चूड़ा, चूड़ा के सामने पहनाने के गहने। ऊन का काला डोरा, तवा, जलता हुआ कोयला, नेग के लिफाफे, एक प्लेट में गेहूँ की घूघरी, (तापड़िया परिवार में बाजरी की घूघरी बनती है।) गुड़, चांदी का एक बड़ा लोटा, एक छोटा लोटा, लाल कपड़ा, मूंग, एक कटोरी में थोड़ा दूध, पगेलागनी के लिफाफे, हल्दी से रंगा हुआ पोतड़ा (जो न्हावण के दिन वह बच्चे के नीचे लगाया था।)
जलवा के दिन लोई पीठी नहीं करते। एक दिन पहले हाथ व पांव में मेहंदी मंडवा देते हैं। जलवा के दिन जच्चा को सर धोकर नहलाते हैं । बाळ थोड़ा हाथ से ही ठीक करते हैं। (कंघी से नहीं।) भारी साड़ी पहनाते हैं व ऊपर पीळा ओढ़ाते हैं। गहने पहना देते हैं। हल्दी से रंगा हुआ पोतड़ा जो न्हावण के दिन बनाया था वह जच्चा की कमर में पिन से टांक देते हैं। जलवा की पूजा में बच्चे को गोद में नहीं रखते हैं। अकेली जच्चा ही बैठती है । जलवा के लिये जच्चा को जमीन पर गद्दी लगाकर बैठा देते हैं। चौकी पर ननद या भूवा/सासु बैठकर सिर-गूंथी करती है। बालों में तेल लगाती है, चोटी करती है। बालों में मोळी बांधती है एवं सामनेवाले बालों में मेण लगाती है। बोर या टीका लगाती है। मुंह धुलाकर रोळी का टीका लगाती है। नथ पहना देते हैं। जो सिर-गूंथी करे उसे सिर-गूंथी का नेग दिया जाता है। चूड़ा-- घर की बड़ीसासु, सासु, काके सासु कोई एक पहना देती है। तवे पर सांखिया बनाकर इसमें कोई भी बहिन / बेटी थोड़ा-सा जाग्ता (कोयला की अग्नि को जाग्ता कहते हैं) ले आती है। जाग्ता लानेवाली बहिन/बेटी को नेग दिया जाता है। बाजार से चूड़ा आता है उसमें चूड़ियां आपस में चिपकी होती हैं इसलिये चूड़े को सावधानी पूर्वक जाग्ता पर थोड़ा गरम करके खुली कर लेनी चाहिये। अनावश्यक जोर लगाने से चूड़ियां बडी हो सकती हैं। बाजार से जापा का चूड़ा 12 या 16 चूड़ी का आता है। उसमें आगे-पीछे हरे रंग की एवं अन्दर की बाकी चूड़ियां लाल रंग की होती हैं। बांयें हाथ में 5 चूड़ी एवं दाहिने हाथ में 6 चूड़ी पहनाते हैं। एक लाल चूड़ी बचती है उसे पहिनाने वाली को दे देते हैं। (तापड़िया परिवार में पहली एवं आखिरी चूड़ी आधी हरी एवं आधी लाल रंग की होती हैं एवं बीच की चूड़ियां सब लाल रंग की होती हैं।) नया चूड़ा पहनाने के बाद तवे के जाग्ता के ऊपर दोनों हाथ इकठ्ठा करा के चूड़ा के ऊपर थोड़ा-सा पानी डालते हैं। चूड़े के सामने गहने पहना देते हैं। फिर ननद-नानदी - जेठूती किसी एक से चूड़ा में ऊन का काला डोरा बंधवाते हैं व उसे नेग देते हैं।
जच्चा को जमीन पर गद्दी के ऊपर बैठा देते हैं। सामने पाटा रखते हैं। पाटा के नीचे एक छिन्नी में थोड़ा-सा गेहूं या मूंग रखते हैं और उस पर एक रुपया रखते हैं। एक प्लेट में घूघरी रखते हैं। गेहूं का प्रचलन है, (परन्तु तापड़िया परिवार में बाजरी की घूघरी होती है ।) ऊपर थोड़ा-सा गुड़ रख देते हैं।
पूजा के लिये चांदी का एक बड़ा व एक छोटा लोटा जल से भरकर रखते हैं। बड़ा लोटा नीचे और छोटा लोटा ऊपर रखते हैं। पाटा पर लोटे के नीचे मूंग रख देते हैं। दोनों लोटों पर सांखिया मांड देते हैं। मोळी बांध देते हैं। ऊपरवाले छोटे लोटे पर लाल कपड़ा बांध देते हैं, फिर उसकी पूजा करते हैं। नीचेवाले लोटे में रोळी, मोळी, चावल, 5 रुपया व घूघरी डालते हैं। ऊपरवाले लोटे में कटोरीवाले दूध की धार देते हैं। उसके बाद उठकर भगवान को प्रणाम करते हैं। फिर बड़ों को प्रणाम करते हैं। पगेलागनी देते हैं। पूजा के बाद दोनों लोटों को पूजा घर में रख देते हैं। दूसरे दिन दोनों लोटों का जल समुद्र या नदी में या तुलसी के झाड़ में डाल देते हैं। जच्चा, जळवावाले दिन बच्चे को साथ लेकर पीहर जाती है एवं वहां भोजन करके वापस आती है। यदि पीहर गांव में न हो तो अपने ससुराल के किसी परिवार के घर में जाकर भोजन करके आती है। जिस परिवार के घर जाती है उस घर का मुखिया, बच्चे को लिफाफा देता है।
जळवा का मुहूर्त कम दिन में हो तो पीहर या दूसरे घर नहीं जाकर अपने ही घर के गेट के बाहर बैठाकर गुड़ से मुँह ओठा देते हैं।
नारियल, रुपये, तेल, मोठ के आखा (इस प्रकार के प्रसंग पर किसी भी धान को जैसे गेहूं, चावल, मूंग, मोठ आदि को आखा कहते हैं।)
शिशु जन्म से 40 दिन होने पर अच्छा दिन देखकर जच्चा व बच्चा को मन्दिर भेजते हैं। हनुमानजी, लक्ष्मीजी, मुम्बई में वेकंटेश्वर मन्दिर जाते हैं। नारियल व रुपये चढ़ाते हैं। मंदिर से आने के बाद नीचे Main गेट के बाहर दाहिनी तरफ एक पत्थर रख उसे भेरूजी बनाते हैं। उसपर तेल डालकर पूजा करते हैं। नारियल चढ़ाते हैं। मोठ का आखा डालते हैं। उस नारियल को घर में नहीं लाते हैं। नीचे ही बांट देते हैं।
शिशु जन्म से 40 दिन तक, जच्चा रसोई एवं पूजा घर में नहीं जाती है। मन्दिर जाने के बाद ही बाहर आना-जाना शुरू करती है एवं रसोई घर व पूजा घर में जाना शुरू करती है। पुराने रिवाज के अनुसार तो 40 दिन पश्चात् ही जलवा होती थी व जच्चा पति के पास जाती थी। आजकल सुविधानुसार न्हावण के पश्चात् जब ही मुहूर्त मिलता है, जलवा की विधि कर लेते हैं।
खीर, चांदी की कटोरी, चम्मच, लिफाफा।
बच्चा-लड़का या लड़की 5-6 महीने का होने पर अच्छा दिन दिखाकर उसे अन्नप्राशन कराते हैं। घर के किसी बड़े के हाथ से कराते हैं। चांदी की कटोरी में खीर रखकर चम्मच से खिलाया जाता है। अन्नप्राशन के पश्चात बच्चे के हाथ में लिफाफा देते हैं।
नारियल, प्रसाद, माला, सवामणी, नकद रुपये, पूजा की थाली, (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, पानी की गड्डी)। झडुला सिर्फ लड़के का ही होता है।
लड़का होता है तो झडुला उतरवाते हैं । तापड़िया परिवार में सालासरजी, डूंगरहनुमानजी, डाबड़ी माताजी के यहां बच्चे को ले जाकर थोड़े-थोड़े बाल उतारते हैं जिसे झड़ला कहते हैं। पहले सालासर जाते हैं, थोड़े बाल उतारते हैं। सिन्दूर से सर पर सांखिया करते हैं, सवामणी करते हैं, नारियल बधारते हैं, रुपया चढ़ाते हैं, धोक दिलाते हैं। इसके बाद डूंगरहनुमानजी जाते हैं वहां पर भी बच्चे के थोड़े बाल उतारते हैं। फिर सर पर सिन्दूर से सांखिया बनाते हैं एवं प्रसाद चढ़ाते हैं, नारियल बधारते हैं एवं रुपये चढ़ाते हैं एवं धोक दिलाते हैं। फिर डाबड़ी माताजी जाते हैं वहां भी बच्चे के थोड़े बाल उतारते हैं, फिर नारियल, माला व प्रसाद, रुपये चढ़ाते हैं। बच्चे को धोक दिलाते हैं। वहां से लक्ष्मीजी के मन्दिर जाते हैं वहां भी माला, प्रसाद व रुपये चढ़ाते हैं।
दूसरा लड़का हो तब सालासर, डूंगरहनुमानजी एवं डाबड़ी माताजी के यहां झडुला उतारने के पश्चात् श्यामजी की खाटू जाकर भी झडुला उतारते हैं। श्यामजी की खाटू पहले लड़के की चोटी व दूसरे का झडुला उतारते हैं। फिर नारियल, माला, प्रसाद व रुपये चढ़ाते हैं। बच्चे को धोक दिलाते हैं। झडूला का काम जन्म से पहला साल पूर्ण हो उससे पहले कर लेना चाहिये। दूसरा साल लगने पर नहीं होता है। फिर वह काम तीसरे साल लगने पर होता है।
यह सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है जिसमें लड़के को जनेऊ धारण कराया जाता है। उपनयन (जनेऊ) संस्कार, विवाह-पूर्व करने का संस्कार नहीं है। विद्या और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने योग्य बनाने के लिये हमारे महर्षियों ने इस संस्कार की रचना की है। पुराने जमाने में 5 वर्ष की आयु के बाद यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने की प्रक्रिया कर दी जाती थी। यह स्नातक बनने की प्रक्रिया थी। उचित समय पर जिनका उपनयन नहीं होता है उनको विवाह-पूर्व उपनयन/जनेऊ संस्कार कराया जाता है। प्रायः जनेऊ संस्कार प्रातः काल में किया जाता है। प्रायः दो या अधिक बालकों का अपने व अन्य के साथ लेकर एक साथ उपनयन संस्कार कराया जाता है।
5 केसरिया रंग में रंगे हुए नये वस्त्र (कुर्ता, धोती, गंजी, अण्डरवीयर, गमछा ), भिक्षा की थैली के लिए केसरिया रंग का सवा गज खादी का चोकोर कपड़ा, चादर (केसरिया रंग की), लकड़ी की खड़ाऊ, बालक व आचार्यजी दोनों के कंधे पर रखने के लिये एवं कमर में बांधने के लिए मूंज (नारियल) की रस्सी, पांव से नाक की लम्बाई तक की बांस की लकड़ी, जनेऊ, कुश के आसन बैठने के लिए, भिक्षा देने के लिए मेवा - बादाम, किशमिश, काजू, छुआरा कटा हुआ, गट (कटा हुआ), मिश्री, आचार्यजी के लिए नये पांच वस्त्र तथा सहयोगी पण्डितजी जो हवन कराते हैं उनके लिए भी नये पांच वस्त्र (धोती, कुर्ता, गंजी, टोपी, गमछा), संध्या-वन्दन की पुस्तक-संस्कार विधि (श्री दयानंदजी सरस्वती द्वारा लिखित ।)
हवन कुण्ड, हवन की चम्मच, पंचपात्र एवं पंचपात्र की चम्मच, लोटा जल के लिए, टोपिया घी के लिए, घी, छोटी छिन्नी, समिधा, लकड़ी, अर्घा, दीये की बत्ती, कपूर, माचिस, फूल, कलश, दीपक, आरता की थाली (रोळी, मोळी, चावल, गुड़, दूब, पानी की गड्डी), रुपये की थैली (कपड़े की थैली जिसमें खुदरा रुपया रखते हैं जो पूजा में काम आते हैं)। इसी थैली में अलग-अलग नेग के लिफाफे भी रख लेते हैं। आचार्यजी के लिए एवं सहयोगी पण्डितजी की दक्षिणा के लिफाफे, ऊंवारी का लिफाफा, आरता का लिफाफा, छात का लिफाफा।
बालक के साथ मां-बाप व घर के लोग आसन पर बैठते हैं। आचार्यजी जनेऊ का संस्कार कराते हैं। जनेऊ संस्कार के पश्चात् बहिन / बुआ आरता करती है। आरता का नेग देते हैं। छात का लिफाफा देते हैं। बालक सब घरवालों के पास जाकर 'भिक्षां देहि' कहकर भिक्षा मांगता है। घर के सब लोग बालक की थैली में एक-एक मुट्ठी मेवा भिक्षा स्वरूप देते हैं व रुपये भी देते हैं। पक्की रसोई (पूरी आदि) बनती है। पहले भगवान को भोग लगवाते हैं। फिर आचार्यजी एवं पण्डितजी को भोजन कराते हैं, फिर घरवाले भोजन करते हैं। भोजन के पश्चात् आयार्यजी एवं सहयोगी पण्डितजी को भी तिलक करके दक्षिणा देते हैं।
यदि बालक नियमानुसार जेनऊ धारण करता है तो रोज की दिनचर्या में उसे कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है। नियम आचार्यजी बताते हैं।